आज अचानक की मुझे ये गीत मिला - आओ हम इतिहास बनाएँ। तो कई पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। जब मैं वर्धा गया (1991-92) तो अखिल भाई से मुलाकात हुई। एक खुशमिजाज़, तटस्थ और मस्त इन्सान। किसी सूफी फकीर जैसे। वे लिखते और गाते भी खूब थे।
हमें जब भी गाँधी को समझने में कोई दिक्कत होती, हम उनके पास जाते। वे एक दोस्त और मार्गदर्शक थे। उनकी उम्र मुझसे कम से कम 50 साल ज़्यादा रही होगी। लेकिन हमारी दोस्ती में वो रुाकवट नहीं थी।
वे बचपन से बुनियादी तालीम से जुडे रहे, वर्धा में बुनियादी शिक्षण प्रशिक्षण लिया और शायद दिया भी। कुछ समय इन्दौर के पास माचला गाँव में भी रहे। सेवाग्राम आश्रम में भी कई बरस अपनी सेवाएँ दीं। उनकी कोई तस्वीर मेरे पास नहीं, पर उनका खुशनुमा चेहरा मेरी आँखों के सामने है।
हमें जब भी गाँधी को समझने में कोई दिक्कत होती, हम उनके पास जाते। वे एक दोस्त और मार्गदर्शक थे। उनकी उम्र मुझसे कम से कम 50 साल ज़्यादा रही होगी। लेकिन हमारी दोस्ती में वो रुाकवट नहीं थी।
वे बचपन से बुनियादी तालीम से जुडे रहे, वर्धा में बुनियादी शिक्षण प्रशिक्षण लिया और शायद दिया भी। कुछ समय इन्दौर के पास माचला गाँव में भी रहे। सेवाग्राम आश्रम में भी कई बरस अपनी सेवाएँ दीं। उनकी कोई तस्वीर मेरे पास नहीं, पर उनका खुशनुमा चेहरा मेरी आँखों के सामने है।
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