
ये सिर्फ रोजनामचा न होकर अक्सर कविता, कहानी वगैरह की शक्ल में भी लिखा गया है।
अापके सुझावों से हौंसला मिलेगा....
शुभकामना
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रोशनी में ही तो
गुम है
सब कुछ।
काश!!
एक दीप जले भीतर भी
(अक्तूबर 13, 1994; निवेदिता निलयम्, वर्धा)
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