पुस्तक चर्चा

मुझे पढने का शौक है। बौद्धिक रूप से जीवित रहने के लिए शायद पढ़ना अनिवार्य है। यहाँ मैं प्रयास करूँगा कि जो कुछ मैं पढ़ रहा हूँ, वह आपके साथ भी बाटूँ... कुछ अंश, कुछ उद्धरण और कभी कभार कुछ टिप्पणियाँ।

 निम्नवर्गीय प्रसंग

इन दिनों एक किताब पढ़ रहा हूँ - "निम्नवर्गीय प्रसंग" (जो अँग्रेज़ी Subaltern Studies का हिन्दी अऩुवाद है) इसके पहले भाग में अवध के किसान आन्दोलन (1919-20) पर एक अध्याय है। इस आन्दोलन का नेतृत्व बाबा रामचन्द्र नाम के एक साधु कर रहे थे। इसमें एक खुफिया पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट का जिक्र है, जिसमें बताया गया है कि गाँधीजी के बारे में आम किसान लोगों की क्या राय थी। ये लोग गाँधी को 'जानते' नहीं थे पर 'मानते' बहुत थे:
"दूर दराज़ के गाँवों तक गाँधी के नाम का सिक्का जिस तरह से चल पड़ा है, उसे देखकर चकित रह जाना पड़ता है। कोई नहीं जानता कि वह कौन हैं या क्या हैं, फिर भी यह मानी हुई बात है कि उनके हर आदेश का पालन होगा। वह एक महात्मा या साधु हैं, एक पंडित हैं; इलाहाबाद में रहनेवाले ब्राह्मण हैं, यहाँ तक कि देवता हैं। एक आदमी ने बताया कि वह एक व्यापारी हैं जो तीन आने गज़ कपड़ा बेचते हैं। शायद उसे किसी ने गाँधी की दुकान (हैविट रोड़ पर नया स्वदेशी भण्डार) के बारे में बताया हो। जो अधिक बुद्धिमान हैं. वे कहते हैं कि गाँधीजी देश की भलाई के लिए काम करते हैं। लेकिन उनके नाम की असली ताकत तो इस धारणा में छुपी हुई है कि यह गाँधी हैं जिन्होंने प्रतापगढ़ में बेदखली रुकवा दी है। यह नाम का ताकत की अनोखी मिसाल है।"

No comments: