तस्वीरों की दुनिया

अपनी दुनिया को मैं कैमरे की नज़र से देखता और दिखाता हूँ। यहाँ मैं आपके साथ अपनी कुछ तस्वीरें तो साझा करूँगा ही, साथ ही फोटोग्राफी और उससे जुड़े हुनर, उपकरणों के बारे में भी हम चर्चा करेंगे।
हरिद्वार के पास पतंजलि योगपीठ का योगग्राम है। यहाँ रह कर योग, आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा  का उपचार कराया जा सकता है। ये दो तस्वीरें योगग्राम के सुन्दर परिसर की हैं।




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 पतंजलि योगपीठ, फेस २ की एक झलक। यह सुबह-सुबह का वक्त था। मैं यूँ ही टहल रहा था। सामने जो भवन दिखाई दे रहा है वह केंटीन है। सूरज उसके पीछे से ऊगने की तैयारी में है। मैंने कोशिश की है कि सुबह की बेला का वह नायाब नारंगी रंग तस्वीर में उतार पाऊँ....



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चन्द्रग्रहण का नज़ारा। विभिन्न तस्वीरों को जोड़ कर यहाँ रखा है।



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फुदकी का घोंसला


हमारे ऑफिस (‍एकलव्‍य, भोपाल) की एक खिडकी के पास फुदकी [Ashy Prinia or Ashy Wren-Warbler (Prinia socialis)] के जोडे ने एक छोटा-सा, प्‍यारा-सा और साथ ही मजबूत और सुरक्षित घोंसला बनाया है। यह घोंसला घास के सूखे महीन तिनकों और कपडे/धागों के रेशों से गिलकी की एक बेल को सहारा देने के लिए बंधी रस्‍सी के साथ करीने गुँथा हुआ है। इस तिकोने घोंसले का खुला हुआ मुँह ऊपर की ओर है, जो तकरीबन 4-5 इंच लम्‍बा और 2 इंच चौड़ा है। घोंसले की गहराई लगभग 5-6 इंच है। इसके खुले हुए मुँह के ठीक ऊपर बेल का एक चौड़ा पत्‍ता है जो इस घोंसले की छत जैसा नज़र आता है। यइ छत उसे बरसात और शायद शिकारियों की नज़रों से बचाती है। पत्‍ते का यह चतुराईपूर्ण इस्‍तेमाल फुदकी की इंजिनियरिंग का कमाल है। अब तक तो मैं बया (Baya weaver) के ही घोंसलों का दीवाना था, मगर अब फुदकी की चतुराई का भी कायल हो गया हूँ।


मुझे अपने दोस्‍तों से इस घोंसले का पता चला और मैं कैमरा लेकर उस खिड़की के पास पहुँच गया। पहले दूर से उसे देखा और कुछ तस्‍वीरे लीं। फिर सावधानीपूर्वक और फिर धीरे-धीरे नज़दीक जाकर उसमें झॉंका। पहले तो कुछ नज़र नहीं आया, मगर थोड़ा उचक कर देखा तो चमकीले गहरे भूरे रंग के दो अण्‍डे नज़र आए। अण्‍डे बहुत ही सुन्‍दर दिख रहे थे। फुदकी के अण्‍डे मैं पहली बार देख रहा था। कुर्सी पर चढ़ कर, खुद को ऊपर उठा कर, कैमरे को आड़ा-तिरछा करके, खिड़की की रेलिंग में से जगह बना कर मैंने कुछ तस्‍वीरे लीं। पहले-पहल दो अण्‍डे दिखे, फिर तीन और बहुत नज़दीक जाकर देखा तो चार अण्‍डे थे। उन्‍हें देखते ही रह गया। नज़रें हटाने का मन नहीं कर रहा था।
मैंने घोंसले से दूर बैठी मादा फुदकी की एक तस्‍वीर तो खींच ली, मगर मैं चाहता था कि घोंसले के पास बैठी फुदकी की तस्‍वीर लूँ। जब भी मैं उस खिडकी के पास जाता तो आहट पाते ही वह फुर्र...। ऐसा 2-3 बार हुआ और इस दौरान मैंने पाया कि मेरी वजह से वह फुदकी काफी घबरा गई है। अब मैंने वहॉं से हटना ही मुनासिब समझा।
फुदकी आम तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप, म्‍यांमार और श्रीलंका में पाई जाती है। इनकी लम्‍बाई लगभग 5 इंच होती है, जिसमें से आधी लम्‍बाई पूँछ की होती है। इसके ऊपरी पंख (plumage) गहरे सलेटी होते और भीतरी पंख (plumage) हल्‍के पीले होते हैं। ऑंख की पुतली भूरी-पीली, चोंच कुछ काली और पांव माँसल होते हैं। यह अक्‍सर चट्-चट्-चट् की आवाज़ करते हैं, जैसी बिजली के दो तार जुड़ने पर आती है। 
कश्‍मीर और पूर्वोत्‍तर सीमान्‍त के अलावा यह भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में पाई जाने वाला आम पक्षी है, जो जोड़े में या अकेले पाया जाता है।
इनका प्रजननकाल मानसून के दौरान या उसके बाद होता है। क्षेत्रों के अनुसार इसमें विविध्‍ाता पाई जाती है। अक्‍सर यह जून से सितम्‍बर के बीच होता है। ये अपना घोंसला ज़मीन से ज़्यादा ऊँचाई पर नहीं बनाते। यह बहुदा झाडियों में होता है। आम तौर पर मादा 4 से 6 अण्‍डे देती है और लगभग एक 12 दिनों तक सेने के बाद उनमें से बच्‍चे निकलते हैं
....इसका अर्थ है कि कुछ ही दिनों में अण्‍डों में से बच्‍चे निकलने वालें हैं और फिर थाडे बडे होकर वे यह घोंसला छोड़ देंगे। 

(-अमित)






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