हवा में
मुस्कान बिखेर देती है
ना जाने क्यों
अपलक देखती रहती है
अदृश्य आकृतियाँ
आसमान में
ना जाने क्यों
खींचती है आड़ी-तिरछी लकीरें
कागज़ पर, मेज़ पर
या अपनी हथेली पर
ना जाने क्यों
सिर झुका कर
वो कुछ सोचने लगती है
अचानक ही
ना जाने क्यों
कुछ ज्यादा ही
खुश नज़र आती है
वो इन दिनों
ना जाने क्यों
वो पागल लड़की
प्यार करने लगी है
किसी से
ना जाने क्यों...
अमित
(जून 2, 2010)
1 comment:
gud one sir....
Post a Comment