Thursday, June 3, 2010

वो पागल लड़की

ना जाने क्यों
हवा में
मुस्कान बिखेर देती है

ना जाने क्यों
अपलक देखती रहती है
अदृश्य आकृतियाँ
आसमान में

ना जाने क्यों
खींचती है आड़ी-तिरछी लकीरें
कागज़ पर, मेज़ पर
या अपनी हथेली पर

ना जाने क्यों
सिर झुका कर
वो कुछ सोचने लगती है
अचानक ही

ना जाने क्यों
कुछ ज्यादा ही
खुश नज़र आती है
वो इन दिनों

ना जाने क्यों
वो पागल लड़की
प्यार करने लगी है
किसी से
ना जाने क्यों...

अमित
(जून 2, 2010)
 

1 comment:

444 said...

gud one sir....